हिमाचल में संस्थानों को डी-नोटिफाई करने के मामले में अब इस तारीख को होगी सुनवाई, सभी याचिकाओं को एक साथ सुनेगा हाईकोर्ट, पढ़ें पूरी खबर…..
सत्ता पर काबिज होते ही राजनीतिक दल (सरकार) सत्ता के नशे में मदहोश हो जाते हैं। और चार साल तक जनता को भूल कर अपनी ही मौज मस्ती में रहते हैं, लेकिन कार्यकाल के अंतिम (चुनावी) वर्ष में उन्हें फिर जनता की याद आती है और फिर जनता को लुभाने के लिए ताबड़तोड़ फैसले लेने लगते हैं ताकि आगामी चुनाव में फिर से सत्ता पर काबिज हो सकें, लेकिन ऐसा नहीं होता, जनता सरकार के निष्क्रिय चार सालों को नही भूली होती है और वह सत्ता परिवर्तन कर देती है।
सत्ता परिवर्तन होने के बाद प्रदेश में जिस भी राजनीतिक दल की सरकार बनती है वह पूर्व सरकार के अंतिम वर्ष में लिए गए निर्णयों को बदल देती है। इस तरह की राजनीति प्रदेश में सिलसिलेवार चली हुई है। लेकिन इस बार विपक्षी दल ने सैकड़ों संस्थान डी-नोटिफाई करने के मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। अब हाईकोर्ट इस मामले में दाखिल की गई सभी याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करेगा। ये सुनवाई 16 मई को होगी। पढ़ें विस्तार से……
शिमला: पहाड़ी खेती, समाचार (26, अप्रैल)हिमाचल हाईकोर्ट में सुक्खू सरकार के संस्थान बंद करने के फैसले पर 16 मई को सुनवाई होगी। अदालत ने इस तरह की सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने के आदेश दिए हैं। कार्यवाहक न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने दोनों पक्षों को दस्तावेज पूरे करने के आदेश दिए हैं।
भाजपा नेता सुरेश कश्यप, तरलोक कपूर, गोविंद सिंह ठाकुर, बिक्रम सिंह, विनोद कुमार ने अलग-अलग याचिकाएं दर्ज की हैं। इसके अलावा मदद समिति, डोलमा कुमारी, रिषभ और दिले राम ने भी सुक्खू सरकार के संस्थान बंद करने के फैसले को चुनौती दी है। सभी याचिकाओं में आरोप लगाया है कि बिना कैबिनेट बनाए ही पूर्व कैबिनेट के फैसलों को रद्द किया गया है।
दलील दी गई कि सरकार की ओर से जारी प्रशासनिक आदेशों से कैबिनेट के फैसलों को निरस्त करना गैर कानूनी है। जबकि, भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अदालत को बताया गया कि गत 12 दिसंबर को सरकार ने सभी विभागों के अधिकारियों को दिया गया पुनर्रोजगार समाप्त कर दिया। इसी तरह एक अप्रैल 2022 के बाद कैबिनेट में लिए गए सभी फैसलों की भी समीक्षा किए जाने का निर्णय लिया गया। निगमों, बोर्डों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, नामित सदस्यों और अन्य कमेटियों तथा शहरी निकायों में नामित सदस्यों की नियुक्तियां भी रद्द कर दी गईं।
सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही..
याचिका में दलील दी गई कि सरकार द्वेष की भावना से कार्य कर रही है। याचिकाकर्ताओं ने सरकार के 12 दिसंबर को जारी प्रशासनिक आदेश को रद्द करने की गुहार लगाई है। हिमाचल हाईकोर्ट में सुक्खू सरकार के संस्थान बंद करने के फैसले पर 16 मई को सुनवाई होगी। अदालत ने इस तरह की सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने के आदेश दिए हैं।
बता दें कि सुक्खू सरकार ने पूर्व सरकार पर आरोप लगाया है कि बीजेपी सरकार ने चुनावी वर्ष में सिर्फ वोट बटोरने के उद्देश्य से बिना बजट प्रावधान के प्रदेश में सैकड़ों संस्थान खोल दिए थे इसलिए प्रदेश की आर्थिक हालात को देखते हुए सरकार ने पूर्व सरकार के अंतिम कार्यकाल में नोटिफाई संस्थान डिनोटिफाइ किए हैं।
मुख्यमंत्री कई बार अपने वक्तव्यों में कह चुके हैं कि जैसे जैसे बजट का प्रावधान होगा वैसे वैसे आवश्यकता अनुसार संस्थान जनहित में खोलें जाएंगे। वहीं नेता प्रतिपक्ष ने भी अपने कई वक्तव्यों में कहा है कि सुक्खू सरकार ने तो सिर्फ पूर्व सरकार के एक वर्ष के फैसले बदलें हैं, लेकिन जब भाजपा दोबारा सत्ता में आएगी तो कांग्रेस के पूरे 5 साल के फैसले रिव्यू किये जायेंगे।