होलाष्टक शुरू: आज से आठ दिन तक वर्जित रहेंगे शुभ कार्य, जानिए वजह-पौराणिक कथा….

* पहाड़ी खेती, समाचार ( 10, मार्च ) आज फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि है। इस तिथि से होलाष्टक का आरंभ का माना जाता है, जो फाल्गुन की पूर्णिमा तक रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अष्टमी तिथि से पूर्णिमा के इन आठ दिनों में मांगलिक, शुभ कार्यों को वर्जित माना गया है।
वहीं नवविवाहिताओं के लिए ससुराल की पहली होली देखने की मनाही भी होती है। होलाष्टक में कोई भी मांगलिक कार्य जैसे सगाई, विवाह, गृह प्रवेश, गृह आरंभ, मुंडन संस्कार, नवीन वाहन क्रय आदि न करना ही बेहतर है। इस बार 17 मार्च को पूर्णिमा तिथि होगी, जिस दिन होलिका दहन होगा।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक के अशुभ संयोग का प्रभाव समाप्त हो जाता है, अस्तु इसके उपरांत ही शुभ, मांगलिक कार्य करना श्रेयस्कर है। होलाष्टक के आठ दिनों में गुरु मंत्र का जाप तथा विशिष्ट साधना का महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि होलाष्टक के आठ दिन गुजरने के पश्चात मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए यदि रात्रि साधना की जाए, तो शीघ्र फलित होती है।
होलाष्टक से जुड़ी पौराणिक कथाएं
होलाष्टक के संदर्भ में मुख्यत दो पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार अष्टमी से पूर्णिमा तक होली के पहले आठ दिनों में भगवान विष्णु के भक्त बालक प्रह्लाद को उसके पिता राक्षसराज हिरण्यकश्यप द्वारा बहुत यातनाएं दी गई थीं। लेकिन प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति करना नहीं छोड़ा। इससे क्रोधित हो हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए तरह-तरह के उपक्रम किए, लेकिन प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ।
आखिरकार हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका को बुलाया और उसकी गोद में बिठाकर प्रह्लाद को जिंदा जलाने का आदेश दिया। होलिका को यह वरदान था कि आग उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। लेकिन ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद बच गया, वहीं होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई। उसी दिन से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई।
वहीं एक और पौराणिक कथा के मुताबिक प्रेम के देवता कामदेव ने समाधि में लीन भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी। इससे कुपित होकर भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोलकर फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन कामदेव को भस्म कर दिया था। इसके बाद कामदेव की पत्नी रति ने शिव की अराधना की और कामदेव को पुनर्जीवित करने की याचना की, जो उन्होंने स्वीकार कर ली।
भगवान शिव के इस निर्णय पर उनके भक्तों ने धूमधाम से जश्न मनाया। इसी मान्यता के मुताबिक धुलेंडी पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई, जिसके साथ होलाष्टक का अंत होता है और शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
साभार: नई दुनिया, सोशल मीडिया नेटवर्क।

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