गेंहू की नई उन्नत किस्मों में उत्पादकता के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सहने की भी है क्षमता: पढ़ें पूरी खबर….

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वर्षों की कठिन मेहनत और प्रयास के बाद एक तकनीक जिसमें नई किस्में मुख्य रूप से शामिल हैं को विकसित करने वाला वैज्ञानिक और उनको अपने खेतों पर अंगीकृत कर चमत्कृत करने वाला किसान आज भारत की खाद्यान्न सुरक्षा की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है।

करनाल:  पहाड़ी खेती, समाचार (20,अप्रैल )ग्लोबल वार्मिंग, बदलता मौसम, सूखा, अति वृष्टि आदि हमेशा से किसान के लिए चुनौती रहा है। फ़रवरी और मार्च का महीना इस वर्ष भी कई चुनौतियों के साथ आया और सभी को सकते में डाल गया।

लेकिन विगत 5-6 वर्षों में गेहूँ की अखिल भारतीय सुधार परियोजना से निकली हुई कुछ नायाब किस्मों जिसमें भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसन्धान संस्थान, करनाल की किस्मों (DBW 187, DBW 222, DBW 303, DBW 327, DBW 332, DBW 370, DBW 371, DBW 372) ने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उत्साहवर्धक प्रदर्शन किया है जिससे किसानों को काफी लाभ पहुंचा है।

हाल ही में कटाई के बाद किसानों से प्राप्त आंकड़ो को अगर देखें तो इन किस्मों ने 25 कुंटल प्रति एकड़ से लेकर 31कुंटल प्रति एकड़ तक का उत्पादन पंजाब और हरियाणा में दिया है। पूरे भारतवर्ष में करण वंदना (DBW 187) ने उत्पादन की नए ऊँचाइयों को छुआ है। कुछ शब्द जो आमतौर पर हम प्रयोग में बहुत कम लाते है इस बार हमने अविश्वसनीय, अकल्पनीय, अलौकिक, अद्भुत जैसे शब्दों का प्रयोग पिछले 15 दिनों में कई बार किया है और इसका श्रेय देश के मेहनतकश किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, बीज उत्पादकों, विस्तार कार्यकर्ताओं और नीति नियंताओं को जाता है।

फोटो साभार: भारतीय गेंहू और जौं अनुसंधान संस्थान, करनाल

उत्पादन के जो आँकड़े पूरे उत्तरी भारत से आ रहे हैं और जिस तरह का मौसम रहा है। निश्चित तौर पर अचम्भित करने वाला है। 25 कुंटल से लेकर 30-31 कुंटल की पैदावार इस बात का प्रमाण है कि जो किस्में आज के समय में किसानों के खेत में लग रही है उनकी उत्पादन क्षमता अच्छी है साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी सहने की क्षमता है चाहे वो अधिक तापमान हो या फसल का गिरना हो।

साभार: भा. कृ. अनु. प. – भारतीय गेंहू और जौं अनुसंधान संस्थान, करनाल ( ICAR – Indian Institute of Wheat and Barley Reaserch )

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