गेहूं की खेती कैसे करें देखभाल

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गेहूँ रबी ऋतु में उगायी जाने वाली अनाज की प्रमुख फसल है। इसके द्वारा अनाज के साथ-साथ भूसे के रूप में अच्छा चारा भी प्राप्त होता है। 

गेहूं की खेती के लिए भूमि एवं उसकी तैयारी

गेहूं की खेती के लिए दोमट व बालुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिये तथा अच्छी उर्वरा शक्ति युक्त होनी चाहिये । प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिये। इसके पश्चात् हैरो द्वारा क्रास जुताई करके कल्टीवेटर से एक जुताई करके पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिये।

गेहूं की खेती के लिए बीज दर एवं बुवाई

अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए पौधों की उचित संख्या होनी आवश्यक है। गेहूं की बुवाई सामान्य समय पर की जाये तो 100 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है। यदि फसल की बुवाई देरी से की जाये तो बीज की मात्रा में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर देनी चाहिये। गेहूँ की बुवाई का उचित समय नवम्बर के प्रथम सप्ताह से तीसरे सप्ताह तक का है। देरी से बुवाई 15 दिसम्बर तक कर देनी चाहिये। गेहूँ की बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिये। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 से 25 सेंटीमीटर पर्याप्त होती है। जहाँ तक सम्भव हो सके, पलेवा देकर ही बुवाई करनी चाहिये। इससे खेत में खरपतवारों की संख्या कम, फसल का जमाव अच्छा एवं बढ़वार अच्छी होती है।

गेहूं की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने हेतु उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग आवश्यक है। खेत में अच्छी सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद दो या तीन साल में 8 से 10 टन प्रति हैक्टेयर की दर से अवश्य देनी चाहिये। इसके अतिरिक्त गेहूं की फसल को 100 किग्रा. नाइट्रोजन एवं 60 किग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी एवं फास्फोरस की समस्त मात्रा बुवाई के समय पंक्तियों में देनी चाहिये ।

उर्वरकों की यह मात्रा 130.50 कि.ग्रा. डी.ए.पी. व 58 किग्रा. यूरिया के द्वारा दी जा सकती है। इसके पश्चात् नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो बराबर भागों में देनी चाहिये। जिसे बुवाई के बाद प्रथम व द्वितीय सिंचाई देने के तुरंत बाद छिड़क देनी चाहिये। गेहूँ की फसल में जस्ते (जिंक) की कमी भी महसूस की जा रही है। इसके लिए जिंक सल्फेट की 25 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में बुवाई से पूर्व देनी चाहिये लेकिन इससे पहले मृदा परीक्षण आवश्यक है।

सिंचाई

गेहूं की फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए उचित अवस्था पर सिंचाई करनी महत्वपूर्ण होती है। प्रथम सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करनी चाहिये। इस समय पौधे की शीर्ष जड़ें बनती हैं। यह बहुत की महत्वपूर्ण सिंचाई होती है। दूसरी सिंचाई बुवाई के 45-50 दिन बाद (फूटान के समय), तीसरी सिंचाई 60-65 दिन पश्चात् (गांठ बनते समय), चौथी सिंचाई 80-85 दिन बार (बाली आने पर), पाँचवी सिचांई 100-105 दिन बाद (दूधिया अवस्था पर) एवं अन्तिम सिंचाई 115 से 120 दिन बाद (दाना पकते समय) करनी चाहिये। अंतिम सिंचाई से दानों का पूर्ण विकास होता है। जहाँ तक संभव हो सके सिंचाई फव्वारे विधि द्वारा करनी चाहिये।

गेहूं की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण

गेहूं की फसल में चौडी एवं नुकीली पत्ती वाले अनेक खरपतवार जैसे गोयला, चील, पीली सैंजी, प्याजी, गुल्ली डंडा, जंगली जई इत्यादि नुकसान पहुँचाते है। फसल की बुवाई के दो दिन पश्चात् तक पेन्डीमैथालीन (स्टोम्प) नामक खरपतवार नाशी की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव करना चाहिये। इसके उपरान्त फसल जब 30-35 दिन की हो जाये तो बाजार में उपलब्ध 2, 4-डी एस्टर साल्ट 72 ई सी की 1 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिये।

खेत में यदि गुल्ली डंडा, जंगली जई एवं फ्लेरिस माइनर की अधिक समस्या हो तो आइसाप्रोटूरोन की बाजार में उपलब्ध 2 किलो मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के 25-30 दिन पश्चात् छिड़काव कर देना चाहिये।

जिप्सम का प्रयोग

जिन भूमियों का पीएच मान 8 या इससे अधिक हो उन भूमियों में मिट्टी की जांच के अनुसार जिप्सम का प्रयोग करना चाहिये। जिप्सम वर्षा ऋतु में भूमि में मिलाया जा सकता है। यह बुवाई से पूर्व भी खेत में मिलाया जा सकता है। क्षारीय भूमियों में राज-3077, के आर एल 1-4, खारचिया–65 एवं एच डी-1981 किस्मों का प्रयोग करना चाहिये।

गेहूं की खेती के लिए पादप संरक्षण

दीमक :- दीमक गेहूँ के पौधो की जड़े काटकर फसल को बहुत हानि पहुचाँती है। दीमक की रोकथाम के लिए अंतिम जुताई के समय खेत में क्लोरोपाइरीफॉस या क्यूनालफॉस की 20-25 किग्रा. मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरक कर मिट्टी में मिला देनी चाहिए। बीज को क्लोरोपायरीफोस की 2 मिली. मात्रा द्वारा प्रति किलो बीज दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिये। इसके अतिरिक्त खड़ी फसल में क्लोरोपाइरीफोस कीट नाशक की 2 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ देनी लाभदायक रहती है।

मोयला (एफीड) व जैसीडस :- ये कीट पत्तियों व पौधे की बालियों से रस चूसकर फसल को हानि पहुँचाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए इमीडाक्लोरोप्रिड की आधा लीटर या मोनोक्रोटोफास की 1 लीटर या मैलाथियौन की एक लीटर या ऐसीफैट की 500 ग्राम या इकालक्स की एक लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है।

शूट फलाई :- यह कीट पौधे की नई पत्तियों से रस चूसती है इसके कारण पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं इस मक्खी की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 एस एल की आधा लीटर या फोसोलोन 35 ई. सी. की 0.75 लीटर मात्रा 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देनी चाहिये।

भूरी मकड़ी व तेला :- भूरी मकड़ी का प्रकोप दिसम्बर में अधिक होता है। तथा इसके प्रौढ़ व शिशु पत्तियों से रस चूसते हैं तथा पत्तियों हल्के रंग की हो जाती हैं। बीज कम बनते हैं तथा छोटे आकार के रह जाते हैं। भूरी मकड़ी व तेला की रोकथाम के लिए डायमिथोएट 30 ई.सी. एक लीटर या मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी. या फार्मोथियोन 25 ई.सी. की एक लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देनी चाहिये।

चूहा नियंत्रण :- चूहे गेहूं की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाते है। चूहों को नियंत्रित करने के लिए चूहों के बिलो में जिंक फास्फाइड का बना चुग्गा प्रयोग करके चूहों को नष्ट किया जा सकता है। एल्युमिनियम फास्फाइड की 1 ग्राम की गोली प्रति बिल में डालकर भी चूहों को समाप्त किया जा सकता है। अनाज भंडारित जगह पर ब्रोमेडियोलोन 0.005 प्रतिशत चुहानाशक टिकियों द्वारा चूहों को मारा जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे चूहा विष को बच्चों एवं पालतू जानवरों की पहुँच से दूर रखना चाहिये।

पीला/ काला रतुआ :- पीले रतुआ के कारण पत्तियों पर पीले रंग के छोटे – छोटे कतारों में फफोले बन जाते हैं। जबकि काले रतुआ द्वारा पत्तियों की डंठलो एवं तनों पर लाल भूरे से काले रंग के लम्बे धब्बे बन जाते हैं। इन रोगों के नियंत्रण के लिए रोग रोधी किस्में जैसे राज – 3077, राज – 1482 व राज – 3777 किस्मों की बुवाई करनी चाहिये । रोग के लक्षण प्रकट होते ही गंधक का पाउडर 25 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर का भुरकाव व 2 किलो मैन्कोजेब प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर से 2-3 छिड़काव करने चाहिये।

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