सी बी आई जांच: राज्यों के सहमति वापस लेने से सुप्रीम कोर्ट चिन्तित, सीजेआई के पास भेजा मामला

नई दिल्ली : पहाड़ी खेती, समाचार, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों द्वारा दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम के तहत केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को उनके क्षेत्रों में काम करने के लिए जरूरी सामान्य सहमति वापस लेने की प्रवृत्ति पर सोमवार को गंभीर चिंता व्यक्त की।
न्यायाधीश संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि यह ‘वांछनीय स्थिति’ नहीं है। इसके साथ ही पीठ ने मामले को देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण के पास भेज दिया।
अदालत गवाहों को धमकाने और झूठे सबूत गढ़ने से संबंधित एक मामले में दो वकीलों मोहम्मद अल्ताफ मोहंद और शेख मुबारक के खिलाफ जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सितंबर में शीर्ष अदालत ने सीबीआई को एक हलफनामा दाखिल कर अभियोजन इकाई को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण मांगा था। साथ ही सामने आने वाली बाधाओं की पहचान करने के लिए कहा था।
शीर्ष अदालत के आदेशानुसार सीबीआई ने एक हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि आठ राज्यों- पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मिजोरम ने डीएसपीई अधिनियम की धारा-6 के तहत सीबीआई को पहले दी गई सामान्य सहमति को वापस ले लिया है।
इसलिए होती है अनुमति की जरूरत
डीएसपीई अधिनियम की धारा-6 के तहत सीबीआई का गठन किया गया है। इस प्रावधान के तहत, डीएसपीई का एक सदस्य यानी सीबीआई संबंधित राज्य सरकार की सहमति के बिना उस राज्य में अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकती है। कई गैर-भाजपा राज्यों ने सीबीआई से आम सहमति वापस लेते हुए आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार गैर-भाजपा शासित राज्यों में राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ एजेंसी का दुरुपयोग कर रही है।
अब हर मामले में चाहिए विशिष्ट अनुमति
सीबीआई के हलफनामे में कहा गया है कि चूंकि सामान्य सहमति वापस ले ली गई है इसलिए हर मामले में विशिष्ट सहमति लेने की जरूरत पड़ती है। इसमें समय लगता है। यह त्वरित जांच के लिए हानिकारक है। सीबीआई ने हलफनामे में कहा है कि एजेंसी ने कई मामलों की जांच के लिए विशिष्ट सहमति प्रदान करने के लिए 2018 से 2021 के दौरान महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल और मिजोरम की सरकारों को 150 से अधिक अनुरोध भेजे हैं।
ये अनुरोध आय से अधिक संपत्ति, धोखाधड़ी, जालसाजी, हेराफेरी, ट्रैपिंग, बैंक फ्रॉड और विदेशी मुद्रा के नुकसान से संबंधित मामलों की जांच के लिए किए गए थे। 18 फीसदी से कम अनुरोधों को राज्यों की ओर से स्वीकार किया गया। पीठ ने कहा कि यह विचार करने योग्य मुद्दा है। यह कहते हुए पीठ ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया।
साभार: अमर उजाला, सोशल मीडिया।
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