कई राज्यों में जारी रबी फसलों की खेती के बीच जानिए पछेती गेहूं की बुवाई का सही समय और तकनीक….

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* पहाड़ी खेती, समाचार, हमारे देश में गेहूं की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। यह हमारे प्रमुख खाद्यान्न फसलों में से एक है। किसान इस समय पछेती गेहूं की खेती कर रहे हैं। गेहूं बोने के लिए सही समय नवंबर का महीना है।

लेकिन देश के कुछ हिस्सों में दिसंबर के अंत तक गेहूं की बुवाई की जाती है। उत्तर-पश्चिम भारत में 25 दिसंबर तक इसकी खेती होती है। उत्तर-पूर्वी इलाकों में दिसंबर के तीसरे सप्ताह तक इसकी बुवाई होती है। अगर किसान अभी गेहूं की पछेती बुवाई कर रहे हैं तो हम उनके लिए कुछ जरूरी बातें बताने जा रहे हैं।

अच्छी पैदावार के लिए अच्छे बीज का होना बहुत जरूरी है।किसानों को सलाह दी जाती है कि अपने इलाके के हिसाब से पछेती उन्नत किस्मों को चुनाव करें। एक हेक्टेयर में कितना बीज डालना है यह दानों के आकार, जमाव प्रतिशत, बोने के समय, बुवाई की विधि और मिट्टी की दशा पर निर्भर करता है।

धान की कटाई के बाद हैप्पी सीडर से करें बुवाई

अगर एक हजार बीजों का वजन 38 ग्राम हो तो एक हेक्टेयर के लिए 100 किलो बीज की जरूरत होगी. ये भी ध्यान रखें कि छिटकवां विधि से बुवाई करने पर बीज ज्यादा लगता है और खर-पतवार निकालने में भी परेशानी ज्यादा होती है. इसलिए सीड ड्रिल से कतारों में बुवाई करने को बेहतर माना जाता है.

बहुत से किसान धान की कटाई के बाद गेहूं बोते हैं। ऐसे किसानों को चाहिए कि धान की पराली को जलाने से परहेज करें और हैप्पी सीडर से बुवाई करें। इससे गेहूं बोने पर धान की कटाई के बाद खेत तैयार करने की भी जरूरत नहीं होती। कतार से कतार के बीच 23 सेंटी मीटर और पौधे से पौधे के बीच 15 सेंटी मीटर की दूरी रखें।

इतनी खाद की मात्रा है उपयुक्त

गेहूं की फसल के लिए 125 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फॉस्फोरस और 40 से 60 किलो पोटाश की जरूरत होती है। लेकिन पछेती बुवाई में पोटाश की मात्रा 80 किलो रखनी चाहिए।ज्यादा पैदावार के लिए बुवाई से पहले 5 से 10 टन गोबर की सड़ी खाद डालना बेहतर रहेगा।

धान, कपास और मक्का के बाद खेत में गंधक, जस्ता, मैगनीज और बोरॉन की कमी हो जाती है। अगर इन फसलों के बाद गेहूं बो रहे हैं तो फसल अवशेष, हरी खाद और गोबर की खाद या फिर कम्पोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए। गंधक की कमी को दूर करने के लिए अमोनियम सल्फेट या सिंगल सुपर फॉस्फेट खेतों में डालें।जस्ते की कमी वाले इलाकों में साल में कम से कम एक बार जिंक सल्फेट डालना चाहिए।

साभार: TV 9 भारतवर्ष, सोशल मीडिया नेटवर्क।

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