प्रेरक प्रसंग: रावण के मूर्छित होने पर क्यों रोने लगे हनुमान जी….

IMG_20211229_220653_copy_540x804
Spread the love

 पहाड़ी खेती, हनुमान जी अजर और अमर हैं। हनुमान ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त हनुमान जी की शरण में आएगा उसका कलियुग में कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा।

जिन भक्तों ने पूर्ण भाव एवं निष्ठा से हनुमान जी की भक्ति की है, उनके कष्टों को हनुमान जी ने शीघ्र ही दूर किया है। हनुमान भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता उनके संकटों को हनुमान जी स्वयं हर लेते हैं।

हनुमान जी से संबंधित एक रोचक प्रसंग :

क्या आपको पता है कि आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं करते थे, अपितु मुक्के का प्रयोग करते थे।
रामचरितमानस में हनुमान जी को “महावीर” कहा गया है। शास्त्रों में “वीर” शब्द का उपयोग बहुतों के लिए किया गया है।

जैसे भीम, भीष्म, मेघनाथ, रावण, इत्यादि परंतु “महावीर” शब्द मात्र हनुमान जी के लिए ही उपयोग में लाया गया है। रामचरितमानस के अनुसार “वीर” वो है जो पांच लक्षण से परिपूर्ण हो।
1.विद्या-वीर,
2.धर्म-वीर,
3.दान-वीर,
4.कर्म-वीर,
5.बलवीर।

परंतु “महावीर” वो है जिसने पांच लक्षण से युक्त वीर को भी अपने वश में कर रखा हो। भगवान् श्री राम में पांच लक्षण थे और हनुमान जी ने उन्हें भी अपने वश में कर रखा था।

रामचरितमानस मानस की यह चौपाई इसे सिद्ध करती है
“सुमिर पवनसुत पावननामु।
अपने वस करि राखे रामू”

तथा रामचरितमानस मानस में “महाबीर विक्रम बजरंगी” भी प्रयोग हुआ है।
शास्त्रानुसार इंद्र के “एरावत” में 10,000 हाथियों के बराबर बल होता है। “दिग्पाल” में 10,000 एरावत जितना बल होता है। इंद्र में 10,000 दिग्पाल का बल होता है। परंतु शास्त्रों में हनुमान जी की सबसे छोटी उगली में 10,000 इंद्र का बल होता है।

शास्त्रों में वर्णित इस प्रसंग के अनुसार रावण पुत्र मेघनाथ हनुमानजी के मुक्के से बहुत डरता था। हनुमान जी को देखते ही मेघनाथ भाग खड़ा होता था। जब रावण ने हनुमान के मुक्के कि प्रशंसा सुनि तो उसने हनुमान जी का सामना कर हनुमानजी से बोला,

“आपका मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा मेरे ऊपर भी आजमाओ, मैं आपको एक मुक्का मारूंगा और आप मुझे मारना।”
फिर हनुमानजी ने कहा “ठीक है! पहले आप मारो।”

रावण ने कहा “मै क्यों मारूँ ? पहले आप मारो”।

हनुमान बोले “आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे”।

अब रावण ने पहले हनुमान जी को मुक्का मारा। इस प्रकरण की पुष्टि यह चौपाई करती है “देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर। आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर”

रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे।

रावण मोह का प्रतीक है और मोह का मुक्का इतना तगड़ा होता है कि अच्छे-अच्छे संत भी अपने घुटने टेक देते हैं। फिर हनुमानजी ने रावण को एक घूंसा मारा। रावण ऐसा गिर पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो।

रावण मूर्च्छा भंग होने पर फिर वह जागा और हनुमानजी के बड़े भारी बल को सराहने लगा, गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि “अहंकारी रावण किसी की प्रशंसा नहीं करता पर मजबूरन हनुमान जी की प्रशसा कर रहा है”।

प्रशंसा सुनकर हनुमान जो को प्रसन्न होना चाहिए पर वे तो रो रहे हैं स्वयं को धिक्कार रहे हैं” गोस्वामी जी के अनुसार हनुमानजी ने रोते हुए कहा कि “मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है, ‘जो हे देवद्रोही! तू अब भी जीता रह गया’
हनुमान जी के लिये रावण को मारना बड़ी बात नहीं थी लेकिन उसे तो प्रभु श्री रामचन्द्रजी के हाथों से मुक्ति मिलनी थी।

अर्थात हनुमान जी का मुक्का खाने के बाद भी रामद्रोही रावण जीवित है। मोह की ताकत देखो, मोह को यदि कोई मार सकता है तो केवल भगवान श्रीराम उनके अलावा कोई नहीं मार सकता। इसकी पुष्टि यह चौपाई करती है..

“मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा धिग धिग मम पौरुष धिग मोही। जौं तैं जिअत रहे सिसुरद्रोही”

साभार: सोशल मीडिया नेटवर्क।

About The Author

You may have missed