सुप्रीम कोर्ट : नशे में ड्राइविंग से मामूली एक्सिडेंट भी हुआ तो नहीं बरती जा सकती नरमी, ड्रिंक एंड ड्राइव मामले पर शीर्ष अदालत की सख्ती….

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नई दिल्‍ली: पहाड़ी खेती, समाचार ( 28, जनवरी ) सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को शराब पीकर गाड़ी चलाने के एक मामले में सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि ड्रिंक एंड ड्राइव की घटनाओं पर सिर्फ इसलिए नरमी नहीं बरती जा सकती, क्योंकि इसके चलते कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई।

शराब पीकर गाड़ी चलाना और लोगों के जीवन के साथ खेलना एक बड़ा जुर्म है और किसी को भी शराब पीकर गाड़ी चलाने की इजाजत नहीं दी सकती।

क्या था मामला?
जिस व्यक्ति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, वह पीएसी में 12वीं बटालियन का ड्राइवर था। फतेहपुर में ड्यूटी के दौरान पीएसी जवानों को ले जाने के दौरान उसके ट्रक की टक्कर जीप के साथ हो गई। उस पर शराब के नशे में गाड़ी चलाने और दुर्घटना करने का आरोप लगाया गया था। उसी दिन हुई मेडिकल जांच में पता चला कि वह शराब के नशे में था। उसके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई और जांच अधिकारी ने जांच के बाद बर्खास्तगी की सजा का प्रस्ताव रखा। अधिकारियों ने इस पर कुछ समय बाद पीएसी ड्राइवर को बर्खास्त भी कर दिया।

हालांकि, पीएसी ड्राइवर इस सजा के खिलाफ इलाहबाद हाईकोर्ट पहुंच गया। उच्च न्यायालय ने इस मामले को गंभीर मानते हुए ड्राइवर की सजा कम करने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद ही इस व्यक्ति की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई।

क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
अब जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस वीवी नागरत्न की बेंच ने मामले में सख्त टिप्पणी की है। बेंच ने कहा कि यह तथ्य कि ड्राइवर शराब के नशे में ट्रक चला रहा था, स्थापित और साबित हो गया है। बेंच ने कहा कि शराब के नशे में पीएसी कर्मियों को ले जा रहे ट्रक को चलाना एक बहुत ही गंभीर अपराध है। इस तरह अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जा सकती और वह भी अनुशासित सेना में।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “यह सौभाग्य है कि कोई घातक दुर्घटना नहीं हुई। एक घातक दुर्घटना हो सकती थी। जब कर्मचारी पीएसी कर्मियों को लेकर ट्रक चला रहा था, तो ट्रक में यात्रा कर रहे पीएसी कर्मियों की जान जा सकती थी। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि उसने उन पीएसी कर्मियों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया, जो ड्यूटी पर थे।

हालांकि, बेंच ने बर्खास्तगी की सजा को अनिवार्य सेवानिवृत्ति में परिवर्तित करके कर्मचारी को आंशिक राहत दी, यह देखते हुए कि बर्खास्तगी की सजा को बहुत कठोर कहा जा सकता है। चूंकि केस के दौरान ही कर्मचारी की मृत्यु हो चुकी है, इसलिए बेंच ने निर्देश दिया कि मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ के साथ-साथ परिवार पेंशन का लाभ, यदि कोई हो, का भुगतान मृतक कर्मचारी के कानूनी वारिसों को कानून के अनुसार किया जाना है और इसे ध्यान में रखते हुए बर्खास्तगी की सजा को अब अनिवार्य सेवानिवृत्ति में बदल दिया गया है।

साभार: अमर उजाला, सोशल मीडिया नेटवर्क।

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