बिना सबूत किसी जर्जर चबूतरे को धार्मिक स्थल नहीं माना जा सकता- सुप्रीम कोर्ट……

कोर्ट ने कहा कि सबूत के अभाव में किसी जर्जर दीवार या चबूतरे को नमाज अदा करने के उद्देश्य से धार्मिक स्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
नई दिल्ली : पहाड़ी खेती, समाचार ( 30, अप्रैल ) सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वक्फ से संबंधित मामले को लेकर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि चढ़ावा या उपयोगकर्ता के किसी भी सबूत के अभाव में किसी जर्जर दीवार या चबूतरे को नमाज अदा करने के उद्देश्य से धार्मिक स्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता।
‘नहीं कहा जा सकता वक्फ’
न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ढांचे का इस्तेमाल मस्जिद के रूप में किया जा रहा था। इसमें कहा गया है कि चढ़ावा या उपयोगकर्ता या अनुदान का कोई सबूत नहीं है, जिसे वक्फ अधिनियम के अर्थ में वक्फ कहा जा सकता है।
‘चबूतरे को नहीं दिया जा सकता धार्मिक स्थल का दर्जा’
पीठ ने कहा, “विशेषज्ञों की रिपोर्ट केवल इस हद तक प्रासंगिक है कि संरचना का कोई पुरातात्विक या ऐतिहासिक महत्व नहीं है। समर्पण या उपयोगकर्ता के किसी भी प्रमाण के अभाव में एक जर्जर दीवार या एक चबूतरे को धार्मिक स्थल का दर्जा नहीं दिया जा सकता।”
पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली राजस्थान वक्फ बोर्ड द्वारा दायर अपील को खारिज कर दी।कोर्ट ने कहा कि यह जिंदल सॉ लिमिटेड और अन्य की कार्रवाई में हस्तक्षेप नहीं करने का निर्देश देता है, जो भीलवाड़ा जिले के पुर गांव में खसरा नंबर 6731 में बने ढांचे का हिस्सा है। फर्म को 2010 में भीलवाड़ा में गांव ढेडवास के पास सोना, चांदी, सीसा, जस्ता, तांबा, लोहा, कोबाल्ट, निकल और संबंधित खनिजों के खनन के लिए 1,556.7817 हेक्टेयर क्षेत्र का पट्टा दिया गया था।
साभार:ABP न्यूज़, सोशल मीडिया नेटवर्क।

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