नमन एक सुबह को

उस सुनहरी
सुबह की शीतल
ठिठुरती दूब पर्यंत ओंस
कैसे नहीं वाष्प जनित
नव ऊर्जा से
खोले मन के कोष
जब आह्लादित मर्म
हृदय को छू जाते
और मानस पटल
तब हिल जाते
हिमगिर से उत्तंग
शीश तब तन जाते
जब गा उठते सब
विद्यालय प्रांगण में
प्रातःकाल—
“जन गण मन अधिनायक जय हे,
भारत भाग्य विधाता….”
और अंततः
“भारत माता की जय,
भारत माता की जय…”
—का गर्वित उद्घोष ।।
— महेंद्र वर्मा
( एक सुबह को नमन जो उगी थी वैंकूवर(कैनाडा) के क्षितिज पर और याद करा गई मेरी कितनी ही बालपन की प्रातः काल सभायें और प्राथमिक वर्षों की शिक्षा)
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