अब तलक उगने की फिराक में हूँ !! नई कविता

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ख़ुद को इज़ाद
करता हूँ
रोज़-रोज़ बेशक मैं!


तक़लीफ, तो बस यह है
कि मैं अब तलक,
उगने की फिराक में हूँ !!
—महेंद्र मेहताब

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