मून इकॉनोमिक्स: चंद्रयान- 3, सिर्फ जानकारी नहीं, भारत को अरबों का बिजनेस देगा, मून इकॉनोमिक्स से ऐसे धाक जमाएगा ISRO, पढ़ें पूरी खबर….
नई दिल्ली: पहाड़ी खेती, समाचार (22, अगस्त) रूस, अमेरिका, साउथ कोरिया और जापान जैसे देशों में रेस ऑफ मून यानी चंद्रमा पर पहुंचने और बेस बनाने की होड़ लगी हुई है। चांद पर रेस के पीछे मून इकॉनोमिक्स है। रेस ऑफ मून में अमेरिका और रूस पीछे छूट गए हैं।
रूस का लूना-25 मिशन फेल होने के बाद अब हिंदुस्तान इतिहास रचने जा रहा है। 23 अगस्त को शाम 6:04 बजे सबसे कम दूरी यानी 25 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंड कराने की कोशिश की जाएगी।
भविष्य में चांद पर लोगों को बसाने की भी प्लानिंग है। भविष्य में युद्ध, रिसर्च और यहां तक कि छुट्टी मनाने के लिए भी चांद पर बेस बनाए जा सकते हैं। चांद पर जाने की रेस में भारत उन चुनिंदा देशों में हो जाएगा जो चांद पर वो खोज कर सकते हैं, जिनसे आगे जाकर भारत चंद्रमा पर अपना बेस बनाने में कामयाब हो सके। चंद्रयान-3 की सफलता मून इकोनॉमी पर हिंदुस्तान की धाक जमा देगी, इसलिए आइए समझते हैं कि ये मून इकोनॉमी क्या है?
कैसे खुलेंगे ‘मून इकॉनोमी’ के दरवाजे?
भारत ने अपने हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान को लॉन्च किया है। बीते दिनों अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस की कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ ने इसरो के LVM3 रॉकेट के इस्तेमाल में अपना इंटरेस्ट दिखाया था। जेफ बेजोस अपनी स्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन में भारत के LVM3 का इस्तेमाल कॉमर्शियल और टूरिज्म पर्पज के लिए करना चाहते हैं। चंद्रयान-3 भारत के लिए भारी भरकम मून इकॉनोमी के दरवाजे खोलने वाला है। बताते चलें कि स्पेस एक्स जैसी कई कंपनियां चांद तक के ट्रांसपोर्ट को बड़ा बिज़नस मान रही हैं। चंद्रयान के ज़रिए भारत उस बड़े बिज़नस में अपनी हिस्सेदारी के लिए तैयार है।
2040 तक 4 करोड़ 20 लाख डॉलर की होगी मून इकॉनोमी
प्राइस वॉटरहाउस कूपर के अनुमान के मुताबिक, चांद तक होने वाले ट्रांसपोर्टेशन का व्यापार साल 2040 तक 42 बिलियन डॉलर तक हो सकता है। प्राइस वॉटरहाउस कूपर ने 2020 से 2025 के बीच 9 बिलियन डॉलर के मून इकोनॉमी का अनुमान लगाया है। साल 2026 से 2030 तक के लिए मून इकॉनोमी का अनुमान 19 बिलियन डॉलर का है। 2031 से 2035 के बीच 32 बिलियन डॉलर की मून इकॉनोमी होगी और 2036 से 2040 के बीच 42 बिलियन डॉलर यानी 4 करोड़ 20 लाख डॉलर की होगी।
सिर्फ चांद तक होने वाले ट्रांसपोर्टेशन के व्यापार से ही मुनाफा नहीं होगा, चांद से मिलने वाला डाटा भी बेहद अहम होने वाला है। हर देश सफलतापूर्वक चांद पर नहीं उतर सकता है।तो वो वहां से मिलने वाली जानकारी भारत से ही करोड़ों डॉलर में खरीदी जाएगी, ताकि बिना यान भेजे चांद पर रिसर्च की जाए।
एक अनुमान के मुताबिक…
- साल 2030 में 40 और 2040 तक चांद पर 1000 एस्ट्रोनॉट रह रहे होंगे।
- उनके जाने से पहले चांद की सतह की जानकारी इकट्ठा करना बेहद ज़रूरी है, ताकि वहां रहने के लिए बेस बनाने की तैयारी की जाए।
- चंद्रयान 3 इसके लिए भी बेहद जरूरी जानकारी जुटाएगा।
- ये जानकारी भी करोड़ों डॉलर कमाने का जरिया बनेंगी।
चांद पर कम्यूनिकेशन के नेटवर्क बनाने और एस्ट्रॉनॉट के लिए उपकरण ले जाने के लिए भी भविष्य में इंटरनेशनल बेस बनाया जाना जरूरी हो जाएगा। इसके लिए भी चंद्रयान 3 की रिसर्च काम आएगी। सिर्फ सरकारें ही नहीं, निजी कंपनियां जैसे आईस्पेस और एस्ट्रॉबॉटिक चांद की सतह तक कार्गो ले जाने की तैयारी कर रही हैं यानी मून इकॉनोमी बहुत विशाल है और चंद्रयान-3 ने मून रेस में इंडिया को सबसे आगे कर दिया है।
‘चंद्रयान-3’ से भारत को क्या हासिल होगा
- ‘चंद्रयान-3’ की सफलता से पूरी दुनिया भारत के वैज्ञानिकों और स्पेस साइंस में हिंदुस्तानी काबलियत का लोहा मानेगा।
- दुनिया को पता चलेगा कि हमारे पास चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और रोवर को वहां चलाने की काबिलियत है।
- इससे दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ेगा जो कॉमर्शियल बिजनेस बढ़ाने में मदद करेगा।
साभार: एजेंसियां,TV 9 भारतवर्ष,सोशल मीडिया नेटवर्क।