किसानों के लिए मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना लागू , अब तक 24.60 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा चुके हैं, जानें विस्तार से – पढ़ें पूरी खबर……
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा का विवरण देते हैं
- मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए राज्यों को तीन साल में एक बार मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाना होगा।
नई दिल्ली: पहाड़ी खेती, समाचार ( 17, दिसम्बर )कृषि भूमि में जैविक कार्बन की उपस्थिति की नियमित रूप से मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) के माध्यम से जाँच की जाती है। योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए राज्यों को तीन साल में एक बार मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाना होगा। अब तक 24.60 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाए जा चुके हैं।
मिट्टी में जैविक कार्बन में कमी के प्रमुख कारण हैं, (i) दोषपूर्ण प्रथाएं जैसे रासायनिक उर्वरक का अविवेकपूर्ण या अत्यधिक उपयोग, बार-बार जुताई, ठूंठ जलाना, अतिचारण और कटाव; (ii) बारहमासी वनस्पतियों की जगह एकल फसल और चारागाह उगाना और (iii) मिट्टी के भौतिक-रासायनिक गुण जैसे मिट्टी का घनत्व, उच्च बजरी सामग्री, मिट्टी का कटाव और मिट्टी में पानी की कम मात्रा/खराब नमी संरक्षण उपाय।
इस समस्या के समाधान के लिए सरकार किसानों को मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता कार्ड जारी करने के लिए मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना लागू कर रही है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा का विवरण देते हैं तथा मृदा में जैविक कार्बन एवं स्वास्थ्य में सुधार के लिए जैविक खादों एवं जैव-उर्वरकों के साथ-साथ द्वितीयक एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (आईएनएम) पर किसानों को सलाह दी जाती है।
सरकार सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (एमओवीसीडीएनईआर) के माध्यम से मिट्टी के जैविक कार्बन में सुधार के लिए जैविक खेती को भी बढ़ावा दे रही है। परम्परागत कृषि विकास योजना और पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट के अंतर्गत किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से तीन साल की अवधि के लिए 15 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें मुख्य रूप से जैव-उर्वरक शामिल हैं।
बता दें कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 25 नवंबर, 2024 को बायोमास मल्चिंग, बहु-फसल प्रणाली, मिट्टी की जैविक सामग्री, मिट्टी की संरचना, पोषण में सुधार, मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाने के लिए खेत पर बने प्राकृतिक खेती जैव-इनपुट के उपयोग जैसे कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन (एनएमएनएफ) को भी मंजूरी दी है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने वर्षा जल के बहाव के कारण मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए कई स्थान-विशिष्ट जैव-इंजीनियरिंग उपाय, हवा के कटाव को रोकने के लिए रेत के टीलों को स्थिर करने और आश्रय बेल्ट तकनीक तथा समस्याग्रस्त मिट्टी के लिए सुधार तकनीक विकसित की है जो मिट्टी में जैविक कार्बन को बढ़ाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद 16 राज्यों में 20 केंद्रों के साथ “जैविक खेती पर नेटवर्क परियोजना (एनपीओएफ)” को लागू कर रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने 16 राज्यों के लिए उपयुक्त 68 फसल प्रणालियों के लिए स्थान-विशिष्ट जैविक खेती पैकेज विकसित किए हैं, जिन्हें विभिन्न केंद्रीय/राज्य योजनाओं के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है।
कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री राम नाथ ठाकुर ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।