किसानों के लिए वरदान “वर्मी कल्चर” उर्फ़ केंचुआ पालन

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वर्मी –कंपोस्ट को वर्मी कल्चर या केंचुआ पालन भी कहा जाता है| विदेशों में इसे व्यवसायिक रूप में मछलियों की खाद के लिए सन 1950 से इसका उत्पादन प्रारंभ किया गया| धीरे –धीरे यह उद्योग का रूप लेने लगा और 1970 तक अनेक देशों ने इसे मछलियों के चारे के लिए इस व्यवसाय को अपनाया| गोबर, सूखे एवं हरे पत्ते, घास फूस, धान का पुआल, मक्का/बाजरा के शेष, खेतों के बेस्ट (छोड़े गए पदार्थ), डेयरी/कूक्कूट वेस्ट, सिटी गारवेज (शहरी निष्कासित पदार्थ) इत्यादि खाकर केंचुओं द्वारा प्राप्त मल (कास्ट) से तैयार खाद ही वर्मी कंपोस्ट कहलाती है| यह हर प्रकार के पेड़-पौधों, फल वृक्षों, सब्जियों, फसलों के लिए पूर्णरूप से प्राकृतिक, सम्पूर्ण व सन्तुलित आहार (पोषण खाद) है| इससे बेरोजगार युवकों को रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं, साथ ही पर्यावरण प्रदूषण की भी समस्या कुछ हद तक सुलझ सकती हैं| केंचुओं को किसानों का सच्चा मित्र कहा जाता है, जो भूमि में नाइट्रोजन, पोटास, फॉस्फोरस, कैल्सियम तथा मैग्नेशियम तत्वों को बढ़ाता है, जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक है|

वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की विधि

साधारणत: किसी सुरक्षित, छायादार और नम स्थानों पर ही कंपोस्ट तैयार किया जाता है| क्योंकि केंचुओं को अत्यधिक सूर्य प्रकाश और पानी से बचाना आवश्यक है| फार्म व घरों के कूड़ा-करवट (मक्का/बाजरा के डंठल, ठूंठ व सूखी पत्तियाँ) एवं खरपतवारों को एकत्रित करके गड्ढे या मिट्टी के बर्तन या सीमेंट के टैंक या प्लास्टिक बैग या लकड़ी के बक्से (गहराई 30 से 50 सेंमी) में परत लगाकर डाल देते हैं| दो – तीन सप्ताह तक उसमें हल्का-हल्का पानी छिड़काव किया जाता है| अब इसमें केंचुए बीज के रूप में छोड़ दिये जाते हैं|

एक मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी एवं 30 से मी. गहरे बर्त्तनों में (जिसमें खरपतवार है), एक हजार से 1500 वर्म (केंचुआ) पर्याप्त होता है| ये वृद्धि करके इन अवयवों को खाकर मिट्टी के रूप में मल –उर्वरा मिट्टी बनाते हैं, जिसे वर्मी कंपोस्ट कहा जाता है| ये लगभग एक माह के अंदर खाद बना देते हैं, जिसमें अनेक उपयोगी रासायनिक तत्त्व रहते हैं| ऐसे तैयार खाद को खेतों में डालना लाभप्रद है|

तैयार खाद को निकालने की विधि

तैयार खाद जो हल्की नमी युक्त भुरभुरी होती है| उसका एक स्थान पर ढेर बना लिया जाता है और दो – तीन घंटो तक छोड़ दिया जाता है| इससे सारे केंचुएँ नीचे की ओर (जमीन) जमा होने लगते हैं| अब ऊपर के खाद को लेकर उसे मोटी छलनी से (दो मिमि. छिद्र) छोटे- छोटे केंचुओं को या स्थान को अलग कर लिया जाता है| इस प्रकार ये छोटे केंचुएँ एवं बड़े केंचुओं (ढेर के नीचे जमा) को पुन: बीज के रूप में खाद बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है| प्राप्त खाद को खेतों में डाला जाता है या पैकेटों में बेचा जाता है|

लाभ:

  • इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है|
  • मिट्टी की भौतिक दशा, जैविक पदार्थ तथा लाभदायक जीवाणुओं में वृद्धि एवं सुधार होता है|
  • भूमि की जल सोखने की क्षमता और पर्याप्त नमी में वृद्धि, होती है|
  • खरपतवारों में कमी, सिंचाई की बचत तथा फसलों में बीमारी/कीड़े कम लगते हैं|
  • सब्जियों एवं फसलों के उत्पादन में वृद्धि होती है|

सावधानी:

  • वर्मी-कंपोस्ट से अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए वर्मी –कंपोस्ट को पौधों में डालने के बाद पत्तों आदि से अवश्य ढक देना चाहिए|
  • वर्मी, कंपोस्ट के साथ रसायन उर्वरक, कीटनाशी, फफूंदनाशी, खरपतवार- नाशी का प्रयोग नहीं करना चाहिए|



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