” जिजीविषा “….

जीवन के जीवित जलप्रपात, बहते सतत निष्छल निर्बाध। कलुुुषित परतें जम जाती बन विषाद, पाषाण ठहरे-पड़े रह जाते आवाक। निर्झर झरतीं धवनियाँ, बहतीं जलधाराओं में, कोलाहल गहराता बन जीवित कार्यकलाप। जिंदा होने का भ्रम मात्र ही, करता सृृजित मेरा जहान। जीवन के जीवित जलप्रपात, बहते सतत निर्मल अबाध। महेंद्र सिंह वर्मा (वैन्कूवर कनाडा)
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