नई कविता: “आह्वान”

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आह्वान 
— महेंद्र महताब

वर दे 
हे भारत मां, 
जन चेतना बन गाऐं 
हम सब भारती !

विषम पथ पर  
साथ बढ़ें – यह गाऐं 
हम सब आरती !

यह रक्त वही है 
जो सुभाष बन 
बहा था कभी !

है वही तपिश आज
जो उधम सिंह बन 
खौलता अभी ! 

अब्दुल हमीद के हौसले को 
करते हम सलाम, 
हर भारतीय सेनानी को 
है आज यह पैगाम !

अरि निरंकुश बन आज 
समक्ष प्रस्तुत हुआ 
एक नहीं दो-दो दिशाओं से 
हथियार ले आगे बढ़ा !

हे जन गण मन के
अधिनायक वीरों 
जियो तुम बन आज 
भारत के भाग्य विधाता !

जन्म-मृत्यु के फेरे 
तो हैं फीके 
केवल नर उत्थान के गण
नायक ही जीते !

तुम कर्मवीर, शूरवीर, 
रिपुदमन, निर्भय, अरिहंता, 
तुम जननायक, रक्षक, प्रतिपालक, तक्षक बन जाते गौरव राष्ट्र का !

हे मातृभूमि के भाल स्वरूप 
पुष्प, रोली, दिव्य ज्योति रूप 
आह्वान करें हम सब भारती 
राष्ट्र समर्पित तुम पर बन आरती ॥

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