छणिकाएँ….
"जिंदगी" चूल्हे पर चढ़े दूध सी, पेेेड़ से छनती धूप सी, ओंस में डूबी दूब सी, अंंधेरे में भटकते भूत सी, ज़िंदगी विचित्र ऊंट सी...... (एन.पी. सिंह )
"जीवन-सन्ध्या" काफ़ी (जीवन) की प्याली में पड़ी चीनी अध-घुलि रह गई, घूँट दर घूँट मिठास बढ़ती गई और जब मिठास पूूूर्रणता को प्राप्त होने चली तो जिंदगी की शाम हो गई.... (एन.पी.सिंह)